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    यह उक्ति बहुत पुरानी है कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है। लेकिन कोई भी इंसान अपने जीवन में यूं ही सफल नहीं हो जाता। सफलता की कहानी बहुत लंबी और मुश्किलों से भरी होती है। भारतीय समाज की यह मान्यता है कि जीवन के हर मोड पर आने वाली मुश्किलों को आसान करने के लिए ही प्रकृति ने स्त्री की रचना की। वह जीवनदायिनी मां बन कर उसे अपने आंचल की छांव तले बारिश की बूंदों और धूप की तपिश से बचाती है। इंसान पहली बार मां की उंगली थामकर ही चलना सीखता है। चलते हुए जब भी उसके कदम लडखडाते हैं, मां आगे बढकर उसे थाम लेती है। इसी तरह स्नेह वत्सला बहन के रूप में वह अपने हिस्से की सारी खुशियां भाई पर कुर्बान करने को तैयार रहती है। इसके बाद जब वह युवावस्था में प्रवेश करता है तो स्त्री जीवन के सफर में न केवल उसकी हमकदम बन कर साथ चलती है, बल्कि उसे जिंदगी जीने का सलीका भी सिखाती है। कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहीं लिखा है कि अगर स्त्री न होती तो पुरुष का जीवन किसी हिंसक पशु की तरह होता।
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